भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 कि धारा - 37
(कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है)
(1) - प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है-
(क). यदि कोई कार्य, जिससे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती. सद्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोक सेवक द्वारा किया जाता है या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है तो चाहे वह कार्य विधि द्वारा सर्वथा न्यायानुमत न भी हो।
(ख). यदि कोई कार्य, जिससे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, सद्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोक सेवक के निदेश से किया जाता है. या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है. चाहे वह निदेश विधि द्वारा सर्वथा न्यायानुमत न भी हो।
(ग) उन दशाओं में, जिनमें संरक्षा के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त करने के लिए समय है।
(2)- किसी भी मामले में प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार उतनी अपहानि से अधिक अपहानि करने पर नहीं है, जितनी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से करनी आवश्यक है।
उदाहरण- 1. कोई व्यक्ति किसी लोक सेवा द्वारा ऐसे लोक सेवक के नाते किए गए, या किए जाने के लिए प्रयतित कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से तब तक वंचित नहीं होता, जब तक कि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो, कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है।
उदाहरण- 2. कोई व्यक्ति किसी लोक सेवा के निदेश से किए गए, या किए जाने के लिए प्रयतित किसी कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से तब तक वंचित नहीं होता, जब तक कि वह यह न जानता हो. या विश्वास करने का कारण न रखता हो कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसे निदेश से कार्य कर रहा है. या जब तक कि वह व्यक्ति उस प्राधिकार का कथन न कर दे जिसके अधीन वह कार्य कर रहा है. या यदि उसके पास लिखित प्राधिकार है, जो जब तक कि वह ऐसे प्राधिकार को मांगे जाने पर पेश न कर दे।
![]() |
(IPC) की धारा 99 को (BNS) की धारा 37 में बदल दिया गया है। |